ग्लेशियरों की यात्रा रोमांच जगाने के साथ-साथ प्रकृति से जुड़ने का माध्यम तो होती हैं लेकिन बढ़ते मानव दखल से ग्लेशियर संकट में हैं। ग्लेशियर पीछे की ओर खिसकते जा रहे हैं। पिंडारी ग्लेशियर भी साल-दर-साल पीछे खिसकता जा रहा है। इसको लेकर पर्यावरणविद चिंतित हैं। मशहूर छायाकार पद्मश्री अनूप साह बताते हैं कि 60 साल पहले जहां जीरो प्वाइंट हुआ करता था, अब वहां पर भुरभुरे पहाड़ दिखाई देते हैं। ग्लेशियर आधा किमी से अधिक पीछे जा चुका है।
75 वर्षीय पदमश्री अनूप साह ने कहा कि वह इसी सप्ताह पिंडारी ग्लेशियर से लौटै हैं। वर्ष 1964 में पहली बार पिंडारी ग्लेशियर गए थे। तब उनकी आयु 15 वर्ष थी। उनके पिता व नैनीताल पर्वतारोहण क्लब के संस्थापक ने पिंडारी के लिए पहला अभियान आयोजित किया था। इस यात्रा में उनके साथ प्रसिद्ध छायाकार धीरेंद्र बिष्ट भी थे। जो 38 वर्ष पहले भी पिंडारी गए। अनूप बताते हैं कि पिंडारी ग्लेशियर का जीरो प्वाइंट तब से लगभग आधा किमी पीछे खिसक गया है। पहले कपकोट से पैदल चलना होता था। लगभग 115 किमी की ट्रैकिंग होती थी। जिसमें धाकुड़ी की चढ़ाई सबसे रोमांचक थी। अब खाती गांव तक मोटर रोड है। अब कुल ट्रैकिंग लगभग 31 किमी रह गई है। पहले ट्रैकिंग रूटों का रखरखाव बहुत ही अच्छा होता था। वर्तमान में पैदल रास्ते बहुत खराब दशा में है।
खाती से द्वाली की दूरी लगभग तीन किमी बढ़ गई है। रास्ता बहुत खराब हो गया है। रास्तों की मरम्मत नहीं होने के कारण कफनी ग्लेशियर अब तक बंद है। जगंलों में वन्यजीवों की संख्या तेजी से घट रही है। चरवाहों की भेड़ों तथा घोड़ों को हिम तेंदुआ और भालू मार दे रहे हैं। पिछले दिनों 11 घोड़े, 12 भेड़ों को मार दिया गया था। उन्हें किसी प्रकार का मुआवजा नहीं मिला। ग्लेशियरों के पीछे खिसकने का असर वन्यजीव-जंतुओं पर भी पड़ रहा है। क्षेत्र में दिखने वाले थार, भरल, सांभर, घुरड़, काकड़, सैटायर, ट्रैंगोपान, मोनाल, पहाड़ी तीतर और सालम पंजा, सालम मिश्री, अतीस, कुटकी आदि का दिखना अब दुर्लभ हो गया है।