Uttarakhand

उत्तराखंड: क्यों 11 दिन बाद मनाई जाती है बूढ़ी दीवाली, क्या है ईगास पर्व?

दीपावली विश्व प्रसिद्ध त्योहार है. लेकिन आज भी उत्तराखंड मे ईगास यानी बूढ़ी दीपावली बढी धूमधाम से मनाई जाती है. क्योकि पुरूषोत्तम राम जब लंका पर विजय होकर अयोध्या पहुंचे तो वहा पर दीपावली मनायी गयी लेकिन यह खबर दूरस्थ पहाड़ वासियो को ग्यारह दिनो बाद मिली. इसके पीछे भी पहाड मे अलग-अलग तर्क है. लेकिन अब पलायन कर चुके लोग एकबार फिर से इस त्योहार मे अपने गाँव आ रहे है यही इस त्योहार की खूबसूरती है.

क्या है इगास पर्वः-

उत्तराखंड में बग्वाल या इगास मनाने की परंपरा है. दीपावली को यहां बग्वाल कहा जाता है, जबकि बग्वाल के 11 दिन बाद एक और दीपावली मनाई जाती है, जिसे इगास कहते हैं. पहाड़ की लोक संस्कृति से जुड़े इगास पर्व के दिन घरों की साफ-सफाई के बाद मीठे पकवान बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, साथ ही गाय व बैलों की पूजा की जाती है. शाम के वक्त गांव के किसी खाली खेत या खलिहान में भैलो(चीड़ की लकड़ी से बना) खेला जाता है. भैलो एक प्रकार की मशाल होती है, जिसे नृत्य के दौरान घुमाया जाता है. इगास पर पटाखों का प्रयोग नहीं किया जाता है.

क्यों दिवाली के 11वें दिन इसलिए मनाई जाती है इगासः-

एक मान्यता ये भी है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे तो लोगों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था, लेकिन गढ़वाल क्षेत्र में भगवान राम के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली थी, इसलिए ग्रामीणों ने खुशी जाहिर करते हुए एकादशी को दीपावली का उत्सव मनाया था.

एक मान्यता यह भी है कि दिवाली के वक्त गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट और तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी और दिवाली के ठीक 11वें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी. युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दिवाली मनाई गई थी.

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button