Uttarakhand

रुद्रप्रयाग: केदारनाथ आपदा में तबाह हुए तप्तकुंड का पुनर्निर्माण पूरा…ग्रामीणों ने श्रमदान से तैयार किया तप्तकुंड

गौरीकुंड देवभूमि उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग जिले में मन्दाकिनी नदी के तट पर स्थित है। ऐतिहासिक दृष्टि से गौरीकुंड प्राचीन काल से विद्यमान है। यहाँ से केदारनाथ मंदिर की दूरी 14 किलोमीटर है , जो पैदल अथवा घोड़े, डाँडी या कंडी में तय की जा सकती हैं। इस स्थान से केदारनाथ के लिए पैदल रास्ता प्रारंभ होता है। यह कुंड गढ़वाल हिमालय में 6000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार यह माना जाता है कि गौरीकुंड वह स्थान है, जहाँ देवी पारवती ने सौ साल तक भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए ध्यान या तपस्या करी थी, यहां मान्यता है कि जो भी महिला माता पार्वती की आराधना करे उसे मनचाहा फल प्राप्त हो सकता है। लेकिन साल 2013 की आपदा में यह कुंड पूरी तरह से बरबाद हो चुका था।

आपदा के दौरान यह तप्तकुंड पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था और इसी के साथ उसका पानी भी 40 मीटर नीचे मंदाकिनी नदी के तट पर चला गया था। अब गौरीगांव के लोगों ने इस कहावत को सच कर दिखाया है और उन्होंने एकता के बल पर यह साबित कर दिया है कि अगर आत्मविश्वास के साथ कुछ चाहो तो उसको पाना नामुमकिन नहीं होता। उन्होंने बिना सरकार और प्रशासन की मदद से 2013 की आपदा में पूरी तरह तबाह हो चुके तप्तकुंड का पुनर्निर्माण कर दिखाया है। गौरी गांव के ग्रामीण लंबे समय से सरकार से इस तप्तकुंड का पुनर्निर्माण करवाने की अपील कर रहे थे मगर 2013 से सरकार ने इस तप्तकुंड के निर्माण की सुध नहीं ली है।

जब सरकार ने तप्तकुंड के निर्माण के ऊपर 8 सालों तक ध्यान नहीं दिया तब ग्रामीणों ने एक साथ मिलकर तप्तकुंड के पुनर्निर्माण का निर्णय लिया और उन्होंने जो ठाना वह करके भी दिखाय। इसके बाद ग्रामीणों ने सरकार को आईना दिखाते हुए खुद ही श्रमदान से तप्तकुंड का निर्माण पूरा कर लिया है। ग्रामीणों का कहना है कि राज्य सरकार और जिला प्रशासन केवल केदारनाथ धाम पर ही ध्यान देते हैं मगर इन सब अहम पड़ाव के ऊपर कोई भी ध्यान नहीं देता है। वे सरकार से 8 साल से इस तप्तकुंड के निर्माण की बात कर रहे हैं मगर सरकार अपने टालु रवैये के कारण इस तप्तकुंड का निर्माण अब तक नहीं करा सकी है। सरकार ने वुड स्टोन कंस्ट्रक्शन कंपनी को इसके निर्माण का जिम्मा दिया था मगर धनराशि अधूरी होने के कारण इसका कार्य आधा ही छोड़ दिया गया।

 

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